प्राचीन भारत की सिक्का प्रणाली

भारत में सिक्का प्रणाली-    प्राचीन समय में हमारे भारत देश में वस्तु विनिमय के द्वारा व्यापार किया जाता था अर्थात अपने पास की वस्तुएं फल सब्जियां जानवर, अनाज और प्रत्येक वस्तु एक दूसरे से अदर- बदल कर हम अपना जीवन यापन करते थे और व्यापार भी करते थे लेकिन लेकिन सभ्यता के विकास के साथ-साथ समय में परिवर्तन हुआ और हमने वस्तु विनिमय के स्थान पर वस्तुओं को खरीदने और बेचने के लिए सिक्कों के निर्माण के बाद हमने व्यापार करने के लिए सिक्कों का प्रयोग किया, सबसे पहले सिक्का प्रणाली कब प्रारंभ हुई यह जानना आवश्यक बिंदु है इसलिए हम भारत में प्राचीन समय में कितने प्रकार के सिक्कों का प्रचलन था उनके बारे में चर्चा करेंगे-
प्राचीन समय में 7 तरह के सिक्कों का प्रचलन था, जिनका समय और प्रत्येक सिक्के को ढलवाने में किस राजा का सबसे अधिक योगदान था और ये सिक्के किस शताब्दी में ढाले गए यह सभी बिंदु और सिक्को के निर्माण काल और सिक्कों की विशेषताओं के बारे में हम चर्चा करने जा रहे हैं जो की इस प्रकार है-
सिक्कों के प्रकार
*पंचमार्क (आहात) सिक्के
*राजवंशी सिक्के
*सातवाहन के सिक्के
*पश्चिमी क्षत्रप के सिक्के
*गुप्तकालीन सिक्के
*दक्षिण भारत के सिक्के
*विदेशी के सिक्के

पंचमार्क सिक्के

( 1)पंचमार्क सिक्के-  पंचमार्क सिक्कों को उनकी बनाने की विधि की वजह से पंचमार्क सिक्के कहा जाता है ये सभी सिक्के ज्यादातर चांदी धातु के बने हुए हैं और इन सिक्कों पर अनेक प्रतीक बनाए गए हैं जिनमें से एक-एक प्रतीक को अलग-अलग पंच (ठप्पा)द्वारा बनाया गया था। इन सिक्कों को सामान्यतया दो अलग-अलग शासन काल के समय के अनुसार बांटा गया है इन सिक्कों पर अंकित सभी आकृतियां अधिकतर प्रकृति जैसे सूरज अनेक तरह के जानवरों के रंग ,रूपों पेड़ों ,पहाड़ियों आदि से प्रेरित होकर बनाया गया था ।पहली अवधि का श्रेय जनपदों अर्थात छोटे स्थानीय राज्यों को दिया गया और इसकी दूसरी अवधि का पूरा श्रेय शाही  मौर्य काल को जाता है।

राजवंशीय सिक्के

(2)राजवंशीय सिक्के- राजवंशी सिक्के सबसे प्राचीन हिंदी यूनानी शक पल्लवी और कुषाणों से संबंधित है यह सिक्के आमतौर से दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व तथा दूसरी शताब्दी ईस्वी के बीच प्रचलन में आए राजवंशी सिक्कों को तीन प्रकार के अन्य सिक्कों में बांटा गया है जो की इस प्रकार हैं क) हिंद यवन के चांदी के सिक्के हेलेनिस्टिक परंपरा की विशेषता है जिनमें ग्रीक देवी देवताओं को मुख्य रूप से चित्रित किया गया है इसके अलावा इनमें जारी करने वालों के चित्र भी अंकित हैं भारत में देवी देवताओं के चित्रों के साथ सिक्के बनाने की एक लंबी परंपरा है ।
ख) शक -शक युग से हमारे भारतीय गणराज्य का आधिकारिक कैलेंडर प्रेरित है पश्चिमी क्षत्रप के शक सिक्के, अनुमान के अनुसार सबसे प्राचीन दिनांकित सिक्के हैं शत युग से संबंधित सिक्के 78वीं ईस्वी में प्रारंभ किए गए थे ।
ख) कुषाण- कुषाणों ने सर्वप्रथम अपने सिक्कों पर देवी लक्ष्मी के चित्र का उपयोग किया था बुद्ध, कार्तिकेय  कुषाणों के सिक्कों पर चित्रित किए जाने वाले प्रमुख भारतीय देवता थे इन कुषाण सिक्कों में आमतौर पर ग्रीक मेसोपोटामिया, जोरोस्ट्रेयन और भारतीय पौराणिक कथाओं से लिए गए प्रतीकात्मक रूपों को दर्शाया गया है मध्य एशियाई क्षेत्र के कुषाणों ने अपने सिक्कों में ओशो (शिव) ,चंद्र देवता मिरो और बुद्ध को चित्रित किया सबसे पुराने कुषाण सिक्कों का श्रेय आम तौर पर भी कडफिसेस को दिया जाता है।

सातवाहनों के सिक्के

(3) सातवाहनों के सिक्के- इन सिक्कों को मुख्यतः तांबे और शीशे से बनाया गया था हालांकि चांदी की मुद्राओं का भी उल्लेख मिलता है इन चांदी के सिक्कों में चित्र और दिभाषी किवदंतियां थी ,जो क्षत्रप प्रकारों से प्रेरित थी। सातवाहनों के सत्ता में आने की तिथियां  विवादास्पद हैं और विभिन्न रूप से 270 ईसा पूर्व से 30 ईसापूर्व  के बीच रखी गई हैं। सातवाहनों ने अपने सिक्कों में हांथी से बैल घोड़े आदि जैसे जीव जंतुओं के चित्र को चित्रित करवाया था जिन्हें अक्सर प्रकृति के रूपंपाकनों  जैसे पहाड़ियों पेड़ आदि के साथ जोड़ा जाता था।

पश्चिमी क्षत्रप सिक्के

(4)पश्चिमी क्षत्रप सिक्के-  पश्चिम क्षेत्र के सिक्कों को तारीखों वाले सबसे प्राचीन सिक्कों के रूप में माना जाता है इन सिक्कों पर जो किवदंतियां आमतौर छपी थी वे ग्रीक भाषा में थी और ब्राह्मी खरोष्ठी लिपि का भी इस्तेमाल किया गया था, आम तांबे के सिक्कों पर बैल और पहाड़ी तथा हाथी और पहाड़ी के चित्र छपे थे।

गुप्तकालीन सिक्के

(5)गुप्तकालीन सिक्के-  सबसे पुराने गुप्तकालीन सिक्कों का श्रेय समुद्रगुप्त ,चंद्रगुप्त द्वितीय और कुमारगुप्त को दिया जाता है और उनके सिक्के आम तौर पर राजवंशीय, उत्तराधिकार ,महत्वपूर्ण सामाजिक ,राजनीतिक घटनाओं जैसे विवाह गठबंधन ,घोड़े की बली ,शाही सदस्यों की कलात्मक और व्यक्तिगत उपलब्धियां को दर्शाते हैं ,यह सिक्के (चौथी-छठी ईस्वी) कुषाणों की परंपरा का पालन करते हैं जिसमें सिक्के के आगे वाले भाग पर राजा और पीछे वाले भाग पर देवता को दर्शाया गया है।

दक्षिणी भारत के सिक्के

(6) दक्षिणी भारत के सिक्के-  यह सिक्के 11 वीं से 13वीं शताब्दी तक चेर शासको द्वारा  ढलवाए गए थे, इन सिक्कों पर हाथी  और और धार्मिक प्रतिको को चित्रित किया गया था। नौवीं से 13वीं शताब्दी तक जो भी सिक्के ढलवाए गए उनका श्रेय चोल शासको को जाता है।उडि्पी के अलूपस के सिक्के 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच ढलवाए गए।

विदेशी सिक्के

(7)विदेशी सिक्के- इनके अंतर्गत यूरोपीय सिक्के भी आते हैं और मद्रास प्रेसीडेंसी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी स्वामी पैगोडा के रूप में लेवल किए गए सिक्कों को ढाला जिसमें भगवान बालाजी को श्रीदेवी को भू देवी के दोनों ओर दिखाया गया है।

अन्य सिक्के-  दक्षिणी भारत में जहां समुद्री व्यापार के मामलों में संपदा थी रोमन सिक्के भी अपने मूल रूप में प्रचलित हुए हालांकि कई बार विदेशी  संप्रभुता की घुसपैठ के विरोध में इनके परिचालन में कटौती भी की गई ,प्राचीन भारत का मध्य- पूर्व यूरोप के साथ-साथ चीन के साथ भी मजबूत व्यापारिक संबंध था यह व्यापार आंशिक रूप से रेशम मार्ग से और आंशिक रूप से समुद्री व्यापार के मध्य भूमि मार्ग द्वारा किया जाता था।

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